कोरोना पर विवाद / अमेरिका ने सुरक्षा के मद्देनजर कुछ चीनी नागरिकों की एंट्री बैन की, हॉन्गकॉन्ग को छूट देगा; ट्रम्प ने डब्ल्यूएचओ से सभी रिश्ते तोड़ने का ऐलान किया
by दैनिक भास्कर- शुक्रवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा- विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन का पूरी तरह से नियंत्रण है
- अमेरिका ने कोरोना पर चीन और डब्ल्यूएचओ की सांठगांठ की बात कही थी, डब्ल्यूएचओ की फंडिंग रोकी
- ट्रम्प ने हॉन्गकॉन्ग के मुद्दे पर कहा- चीन के सितम से हॉन्गकॉन्ग के लोगों को बचाने के लिए यात्रा के नियम बदलेंगे
दैनिक भास्कर
May 30, 2020, 03:27 AM IST
वॉशिंगटन. दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार को एक बार फिर चीन और डब्ल्यूएचओ को कटघरे में खड़ा किया। अमेरिका पहले ही डब्ल्यूएचओ की फंडिंग रोक चुका है। अब ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ सभी रिश्ते खत्म करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि हम डब्ल्यूएचओ के कोटे का फंड स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाली किसी दूसरी संस्था को देंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने हॉन्गकॉन्ग के मुद्दे पर भी चीन को घेरने की कोशिश की।
ट्रम्प ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन का पूरा नियंत्रण है। जबकि चीन उसे 4 करोड़ डॉलर देता है और अमेरिका एक साल में 45 करोड़ डॉलर की मदद डब्ल्यूएचओ को देता है। दोनों ने हमारी मांग नहीं मानी, इसलिए हम डब्ल्यूएचओ से संबंध खत्म कर रहे हैं। चीन ने वुहान वायरस को छिपाए रखा और इसे दुनियाभर में फैलने दिया। इससे अमेरिका में 1 लाख मौतें हो चुकी हैं। दुनिया में 10 लाख से ज्यादा की जान गई। ट्रम्प ने गुरुवार को कहा था कि कोरोनावायरस दुनिया के लिए चीन का एक बुरा तोहफा है।
चीन पर जासूसी और जानकारियां चुराने का आरोप
अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन पर लंबे समय तक जासूसी करने और औद्योगिक जानकारियां चोरी करने का आरोप भी लगाया। ट्रम्प ने कहा कि आज मैं अपनी घोषणा के जरिए अमेरिका की अहम रिसर्च को बेहतर तरीके से सुरक्षित रखने की बात कहूंगा। हम विदेशी जोखिमों के तौर पर पहचान रखने वाले चीन के कुछ नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर रोक लगाएंगे।
चीन हॉन्गकॉन्ग को लेकर किए वादे से मुकर गया
ट्रम्प ने कहा, ''चीन की सरकार ने हॉन्गकॉन्ग के सम्मान को नुकसान पहुंचाने वाले फैसले लिए हैं। यह हॉन्गकॉन्ग और चीन के लोगों के साथ-साथ दुनियाभर के लिए त्रासदी के समान है। चीन एक देश, दो सिस्टम के वादे से मुकर गया। अब वहां एक देश, एक सिस्टम है। इसलिए अमेरिका हॉन्गकॉन्ग को लेकर अपनी नीतियों में बदलाव करेगा और उसे विशेष दर्जा देगा। हम वहां चीन के बढ़ते खतरे को देखते हुए हॉन्गकॉन्ग के लिए ट्रैवल एडवाइजरी में बदलाव करेंगे।''
अमेरिका v/s डब्ल्यूएचओ
1. यह विवाद क्या है?
अमेरिकी राष्ट्रपति का आरोप है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना के मामले में चीन को लेकर गंभीर नहीं था। इसी वजह से कोरोना संक्रमण दुनियाभर में फैल गया। ट्रम्प ने दावा किया कि डब्ल्यूएचओ अपने काम में विफल रहा है। उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ को फंडिंग रोकी।
2. डब्ल्यूएचओ को आखिर फंड मिलता कितना है?
- अब तक 15% फंड अकेले अमेरिका देता था।
- यूएस ने डब्ल्यूएचओ को 2019 में 55.3 करोड़ डॉलर दिए थे।
- ब्रिटेन 08% फंड देता है।
- अकेले बिल एंड मेलिंडा गेट्स 10% फंड देते हैं।
3. डब्ल्यूएचओ इस फंडिंग को खर्च कहां करता है?
- टीकाकरण अभियान चलाने, हेल्थ इमरजेंसी और प्राथमिक इलाज में दुनियाभर के देशों की मदद करने में फंड खर्च होता है।
- 2018-19 में डब्ल्यूएचओ ने फंड का 19.36% हिस्सा यानी लगभग 1 बिलियन डॉलर पोलियो उन्मूलन पर खर्च किया।
- अफ्रीकी देशों में चल रहे डब्ल्यूएचओ के प्रोजेक्ट्स के लिए 1.6 बिलियन डॉलर खर्च किए गए।
4. क्या डब्ल्यूएचओ महानिदेशक और चीन के बीच कोई कनेक्शन है
जुलाई 2017 में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक का पद संभालने वाले डॉ. टेडरोस अधानोम गेब्रियेसस इथोपिया के नागरिक हैं। उन्हें चीन के प्रयासों की वजह से ये पद मिलने के आरोप लगते रहे हैं। वे इस संस्थान के पहले अफ्रीकी मूल के डायरेक्टर जनरल हैं। आरोप है कि चीन ने टेडरोस के कैंपेन को ना सिर्फ सपोर्ट किया बल्कि अपने मत के अलावा अपने सहयोगी देशों के भी मत दिलवाए। अमेरिका और चीन दोनों ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी सदस्य हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को देने वाले फंड में बढ़ोतरी की है।