
आपातकाल के खात्मे और इंदिरा की वापसी के बीच पीएम बने थे चौधरी चरण सिंह
किसानों के मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण की आज 33वीं पुण्यतिथि है. 1977 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस के खिलाफ आवाज बुलंद किया और मोरारजी देसाई के नेतृत्व की सरकार में उप-प्रधानमंत्री बने. मोरारजी देसाई की सत्ता की विदाई के बाद कांग्रेस के समर्थन से चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार हुआ.
- किसानों का मसीहा चौधरी चरण सिंह
- 1979 में पीएम बने थे चौधरी चरण सिंह
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा रहे चौधरी चरण की आज 33वीं पुण्यतिथि है. आजादी के आंदोलन से लेकर इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ लड़ाई में आगे की कतार में वो खड़े नजर आए. 1977 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस के खिलाफ आवाज बुलंद किया और मोरारजी देसाई के नेतृत्व की सरकार में उप-प्रधानमंत्री बने. देसाई की सत्ता की विदाई के बाद कांग्रेस के समर्थन से चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार हुआ, लेकिन संसद का बगैर एक दिन सामना किए उन्हें महज पांच महीने में ही इस्तीफा देना पड़ा.
बता दें कि 1975 में इंदिरा ने इमर्जेंसी लगा दिया था, जिसके विरोध करने पर चरण सिंह को भी जेल में डाल दिया गया था. 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा हारीं और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई. जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. चौधरी चरण सिंह इस सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे. हालांकि, जनता पार्टी में कलह हो गई और मोरारजी की सरकार गिर गई. इसके बाद 1979 में कांग्रेस के ही समर्थन से चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन संसद में इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई. संसद का बगैर एक दिन सामना किये चरण सिंह को रिजाइन करना पड़ा.
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गाजियाबाद जिले के हापुड़ में चौधरी चरण सिंह का 23 दिसंबर 1902 को जन्म हुआ था. चरण सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से लॉ में डिग्री ली. 1928 में गाजियाबाद में वकालत करने लगे. इसके बाद चरण सिंह ने आजादी के आंदोलन से राजनीति में कदम रखा दिया था.
बागपत की छपरौली विधानसभा सीट का वो 1977 तक लगातार प्रतिनिधित्व करते रहे. 1952, 1962 और 1967 की विधानसभा चुनाव में जीते. गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी रहे. रेवेन्यू, लॉ, इनफॉर्मेशन, हेल्थ कई मिनिस्ट्री में भी रहे. संपूर्णानंद और चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में भी मंत्री रहे. 1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और भारतीय क्रांति दल नाम से अपनी पार्टी बना ली.
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राम मनोहर लोहिया का हाथ इनके ऊपर था. उत्तर प्रदेश में पहली बार कांग्रेस हारी. चरण सिंह मुख्यमंत्री बने 1967 और 1970 में. 1952 में ही उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा खत्म हुई. लेखपाल का पद बना था. अपने मुख्यमंत्री काल में चरण सिंह ने एक मेजर डिसीजन लेते हुए खाद पर से सेल्स टैक्स हटा लिया. सीलिंग से मिली जमीन किसानों में बांटने की कोशिश की, पर उत्तर प्रदेश में ये सफल नहीं हो पाया.
प्रधानमंत्री रहते हुए चरण सिंह कोई फैसला नहीं ले पाये थे. पर वित्त मंत्री रहते हुए खाद और डीजल के दामों को कंट्रोल किया. खेती की मशीनों पर टैक्स कम किया. नाबार्ड की स्थापना उसी वक्त हुई थी. मुलायम सिंह यादव ने सियासत चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में सीखा है.