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भारत-चीन के बीच ताज़ा विवाद की 3 बड़ी वजहें

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नितिन श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
ईसा के जन्म से 500 साल पहले चीन के नामचीन फ़ौजी जनरल सुन ज़ू ने 'द आर्ट ऑफ़ वॉर' नाम की किताब में लिखा था, "जंग की सबसे बेहतरीन कला है कि बिना लड़े हुए ही दुश्मन को पस्त कर दो।"
 
सैकड़ों सालों बाद भी चीन में इस किताब की बातों का लोहा माना जाता है, ठीक उसी तरह जैसे भारत में चाणक्य नीति को माना जाता है।
 
भारत-चीन के बीच फ़िलहाल जारी बॉर्डर तनाव को समझने के लिए शायद 'जंग की इस बेहतरीन कला' को ध्यान में रखने की भी ज़रूरत है।
 
मौजूदा हालात ये हैं कि 1999 में पाकिस्तान वाली सीमा पर करगिल बिल्ड-अप के बाद शायद भारत की किसी सीमा पर पड़ोसी देश के सैनिकों का ये सबसे बड़ा जमावड़ा हो सकता है।
 
भारत और चीन के बीच सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी कहा जाता है यानी 1962 की लड़ाई के बाद की वास्तविक स्थिति।
 
रक्षा मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि यह शुरुआत अप्रैल के तीसरे हफ़्ते में हुई थी जब लद्दाख बॉर्डर यानी लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर "चीन की तरफ़ सैनिक टुकड़ियों और भारी ट्रकों की संख्या में इज़ाफ़ा दिखा था।"
 
इसके बाद से मई महीने में सीमा पर चीनी सैनिकों की गतिविधियाँ रिपोर्ट की गई हैं, चीनी सैनिकों को लद्दाख में सीमा का निर्धारण करने वाली झील में भी गश्त करते देखे जाने की बातें सामने आई थीं।
 
मामले की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ दिनों पहले सेनाध्यक्ष जनरल नरावणे ने सीमा का दौरा किया।
 
मौजूदा तनाव इस बात से भी बढ़ा जब मंगलवार को किसी देश का नाम लिए बिना चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 'सेना को तैयार रहने के निर्देश दिए थे।'
 
इसी दौरान दिल्ली में तीनों सेनाओं के प्रमुखों की बैठकों के दौर जारी थे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल के अलावा उनकी मुलाक़ात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी हुई।
 
मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तूल भी पकड़ा जब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहली बार भारत-चीन सीमा विवाद में मध्यस्थता की पेशकश कर डाली।
 

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वजह सामरिक?
2017 में डोकलाम क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच मुक्केबाज़ी, हाथापाई और छीना-झपटी के वीडियो वायरल हुए थे और कई दिनों के बाद ये तनातनी ख़त्म हुई थी।
 
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का इतिहास वैसे तो दशकों पुराना है लेकिन ताज़ा तनाव की तीन प्रमुख वजहें दिखती हैं।
 
ज़ाहिर है, पहली वजह सामरिक है। ये दो ऐसे पड़ोसी हैं जिनकी फ़ौजों की तादाद दुनिया में पहले और दूसरे नंबर पर बताई जाती हैं और जिनके बीच परस्पर विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है।
 
इस बार भी वही इलाक़े दोबारा चर्चा में हैं जहाँ 1962 में दोनों के बीच एक जंग भी हो चुकी है और चीन का दावा रहा है कि उसने इसमें बाज़ी भी मारी थी।
 
तनाव की बड़ी वजह पिछले कुछ सालों में भारतीय बॉर्डर इलाक़ों में तेज़ होता निर्माण कार्य भी हो सकती है। रक्षा मामलों के जानकार अजय शुक्ला बताते हैं कि 'सड़कें एक बड़ी वजह है।'
 
उन्होंने कहा, "आमतौर से शांतिपूर्ण रही गलवान घाटी अब एक हॉटस्पॉट बन चुकी है क्योंकि यहीं पर वास्तविक नियंत्रण रेखा है जिसके पास भारत ने शियोक नदी से दौलत बेग ओलडी (डीबीओ) तक एक सड़क का निर्माण कर लिया है। पूरे लद्दाख के एलएसी इलाक़े में ये सबसे दुर्गम इलाक़ा है।"
 
लगभग सभी जानकार इस बात से भी सहमत दिखते हैं कि चीन के बॉर्डर इलाक़ों में निर्माण और रखरखाव हमेशा से बेहतर रहा है। सीमावर्ती इलाक़ों की मूलभूत सुविधाओं में भी चीन भारत से कहीं आगे रहा है।
 
भारतीय थल सेना के पूर्व प्रमुख जनरल वीपी मालिक को लगता है, "चीन की बढ़ी हुई बेचैनी की एक और वजह है। चीनी फ़ौज का एक तरीक़ा रहा है क्रीपिंग (रेंगते हुए आगे बढ़ना)। गतिविधियों के ज़रिए विवादित इलाक़ों को धीरे-धीरे अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल कर लेना। लेकिन इसके विकल्प कम होते जा रहे हैं क्योंकि अब भारतीय सीमा पर विकास हो रहा है और पहुँच बढ़ रही है।"
 
हिंदुस्तान टाइम्स में रक्षा सम्बंधी मामले कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार राहुल सिंह भी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं और कहते हैं कि, "पिछले पाँच सालों से भारतीय सीमाओं को बेहतर बनाने पर ज़्यादा ध्यान बढ़ाया गया है।"
 
उनके मुताबिक़, "पहले भी सीमा पर दोनों सेनाओं के सैनिकों में छोटी-मोटी झड़पें होती रहती रही हैं। डोकलाम के पहले भी 2013 और 2014 में चुमार में ऐसी घटनाएँ सामने आई थीं। लेकिन इस बार की गतिविधियों का दायरा ख़ासा बड़ा है।"
 
पूर्व मेजर जनरल अशोक मेहता ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बढ़ती कथित चीनी गतिविधियों का बड़ा कारण "पुल और हवाई पट्टियों का निर्माण बताया जिसकी वजह से भारतीय गश्तें बढ़ चुकी हैं।"
 
उन्होंने ये भी कहा कि, "ये सामान्य नहीं हैं। हालांकि भारतीय सेना प्रमुख ने शुरुआत में कहा था कि इस तरह के मामले होते रहते हैं और सिक्किम की घटना का ताल्लुक़ गलवान घाटी में हुए वाक़ये से नहीं है। लेकिन मेरे हिसाब से सभी मामले एक दूसरे से जुड़े हैं। ये नहीं भूलना चाहिए कि जब भारत ने जम्मू कश्मीर के ख़ास दर्जे को ख़त्म कर दो नए केंद्र शासित प्रदेशों के नक़्शे ज़ारी किए तो चीन इस बात से ख़ुश नहीं था कि लद्दाख के भारतीय क्षेत्र में अक्साई चिन भी था।"
 
आर्थिक वजह?
दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाएँ पिछले पाँच महीनों से कोरोना वायरस के बाद के मंज़र से जूझ रहीं हैं।
 
चीन, अमरीका, यूरोप, मध्य पूर्व समेत भारत और दक्षिण एशिया के देशों की न केवल विकास दरें अप्रत्याशित रूप से गिरी हैं बल्कि बढ़ती बेरोज़गारी और ठप होते व्यवसायों को पटरी पर लाने के लिए सरकारों को लाखों करोड़ों रुपए ख़र्च करने पड़ रहे हैं।
 
ज़्यादातर लोग इसकी तुलना 1930 के 'द ग्रेट डिप्रेशन' से भी कर रहे हैं। इस सब के बीच 17 अप्रैल को भारत सरकार ने एक चौंकाने वाला फ़ैसला लिया।
 
केंद्र सरकार ने देश में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफ़डीआई के नियमों को उन पड़ोसियों के लिए और सख़्त कर दिया जिनकी सीमाएँ आपस में मिलती हैं।
 
नए नियम के तहत किसी भी भारतीय कंपनी में हिस्सा लेने से पहले सरकारी अनुमति लेना अब अनिवार्य कर दिया गया है चूंकि पड़ोसियों में सबसे ज़्यादा व्यापार चीन के साथ है तो इसका सबसे ज़्यादा असर भी उसी पर होगा।
 
इस फ़ैसले की प्रमुख वजहों में से एक थी चीन के सेंट्रल बैंक 'पीपल्स बैंक ऑफ़ चाइना' का भारत के सबसे बड़े निजी बैंक 'एचडीएफ़सी' के 1।75 करोड़ शेयरों की ख़रीद। इससे पहले तक चीन भारतीय कंपनियों में 'बेधड़क' निवेश करता रहा है।
 
अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के जानकार और जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व प्रोफ़ेसर एमएम ख़ान का मानना है, "फ़ौजी और आर्थिक ही वो क्षेत्र हैं जहाँ चीन अपना वैश्विक वर्चस्व क़ायम करने के लिए विदेश नीति को समय-समय पर बदलता रहता है।"
 
उन्होंने कहा, "कोरोना के बाद दुनिया के शेयर बाज़ारों में अफ़रातफ़री मची हुई है और चीन बड़े देशों की कम्पनियों में निवेश कर रहा है। आप दक्षिण एशिया को देख लीजिए। श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश में इन्फ़्रास्ट्रक्चर और टेक्नोलॉजी की बड़ी कंपनियों में चीनी क़र्ज़ या निवेश मिल ही जाएगा"।
 
अब अगर भारत ने एकाएक अपनी एफ़डीआई नीति में एक बड़ा बदलाव किया तो काफ़ी सम्भव है कि चीन की विदेश नीति इससे थोड़ा असहज महसूस कर रही हो।
 
कोरोना वायरस और चीन बैकफ़ुट पर?
हाल ही में 194 सदस्य देशों वाली वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एक प्रस्ताव पेश किया गया कि इस मामले की जाँच होनी चाहिए कि दुनिया भर में नुक़सान पहुँचाने वाला कोरोना वायरस कहाँ से शुरू हुआ। ये असेंबली विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की प्रमुख नीति निर्धारक इकाई है, दूसरे देशों के अलावा भारत ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
 
चीन का बचाव करते हुए सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि चीन ने इस पूरे मामले में पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी के साथ काम किया है।
 
शी जिनपिंग ने कहा, "हमने विश्व स्वास्थ्य संगठन और संबंधित देशों को समय पर सारी जानकारी दी थी। कोरोना पर क़ाबू पा लेने के बाद चीन किसी भी जाँच का समर्थन करता है।"
 
चीन इस समय कोरोना वायरस के स्रोत और शुरुआती स्तर पर ग़लत क़दम उठाने की वजह से आलोचनाओं का सामना कर रहा है लेकिन इसके बावजूद चीन ने पुरज़ोर तरीक़े से इसका विरोध किया है।
 
सबसे ज़्यादा निंदा अमरीका से आ रही है जहाँ कोरोना से मरने वालों की संख्या एक लाख पार कर चुकी है। अमरीका के आर्थिक विकास, ऊर्जा और पर्यावरण मामलों के मंत्री कीथ क्रैच ने कहा था कि, "ट्रंप प्रशासन चीन को कोविड-19 पर चुप रहने के कारण दंडित करने के बारे में विचार कर रहा है"।
 
हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार में रक्षा सम्बंधी मामले कवर करने वाले पत्रकार राहुल सिंह मानते हैं कि, "वुहान में कोरोना के फैलने और उसके बाद वैश्विक निंदा के बीच भारत-चीन सीमा पर विवाद की ख़बरें सामने आने से फ़ोकस तो बदल ही सकता है।"
 
वॉशिंगटन में बीबीसी संवाददाता विनीत खरे पिछले कई महीनों से अमेरिका में चीन के ख़िलाफ़ तेज़ होते स्वर पर रिपोर्ट करते रहे हैं।
 
उन्होंने बताया कि अब अमरीकी मीडिया में भारत-चीन के बीच वस्ताविक नियंत्रण रेखा वाली ख़बरों को एक दूसरे एंगल से भी देखा जा रहा है।
 
मिसाल के तौर पर सीएनएन की वेबसाइट पर चीन पर छपे एक लेख में लिखा है, "ये पहली बार नहीं है जब बीजिंग ने साउथ चाइना सी में अपनी ताक़त का प्रदर्शन किया है या फिर भारत के साथ सीमा पर विवाद किया। लेकिन ऐसे वक़्त में जब वॉशिंगटन और नई दिल्ली में राजनीतिक नेताओं का कोरोना वायरस से जुड़े आंतरिक मामलों के कारण ध्यान बंटा हुआ है, चीन के लिए ये एक मौक़ा है कि वो कैसे इन दोनों इलाक़ों में फ़ायदा उठाए जिसे कोरोना वायरस पैंडेमिक ख़त्म होने के बाद बदला न जा सके।"
 
विनीत खरे बताते हैं कि इसके अलावा कुछ वक़्त पहले तक दक्षिण एशिया के लिए अमरीका की मुख्य डिप्लोमैट ऐलिस वेल्स नेहाल ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा, "अगर किसी को चीन के अतिक्रमण को लेकर शक है तो मुझे लगता है कि उसे भारत से बात करनी चाहिए जहां भारत को हर हफ़्ते, महीने, नियमित तौर पर चीन की मिलिट्री की ओर से परेशान किया जाता है।"
 
भारत चीन सीमा पर बढ़ी गतिविधियों की वजह इन तीनों के अलावा भी हो सकती हैं और इस पर बहस आगे भी जारी रहेगी।
 
फ़िलहाल चीन के विदेश मंत्रालय और राजदूत दोनों ने अपने रुख़ में थोड़ी नरमी ज़ाहिर की है। राजदूत सन विडोंग का कहना था कि, "भारत और चीन एक दूसरे के लिए अवसर हैं, ख़तरा नहीं।"
 
पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल वीपी मालिक मानते हैं कि, "इस तरह के विवादों का हल कूटनीतिक या राजनीतिक ही हो सकता है"
 
लेकिन उन्होंने साफ़ शब्दों में ये भी कहा कि, "मौजूदा विवाद में फ़ौजी हल फ़ेल हो चुका है और जहाँ-जहाँ आपसी तक़रार जारी है वो लंबी खिंच सकती है।"