आज स्कंद षष्ठी पर ऐसे करें भगवान कार्तिकेय की पूजा, हर क्षेत्र में
- स्कंदषष्ठी पर होती है भगवान कार्तिकेय की पूजा
- इस दिन संतान के आरोग्य व सफलता के लिए रखा जाता है व्रत
- दक्षिण भारत में विशेष रूप से होती है कार्तिकेय की पूजा
हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कंद षष्ठी मनायी जाती है। इस दिन देवों के सेनापति और भगवान शिव जी एवं माता पार्वती के अग्रज पुत्र कार्तिकेय की पूजा-उपासना की जाती है। इन्हें स्कंद देव, महासेन, पार्वतीनन्दन, षडानन, मुरुगन, सुब्रह्मण्यम आदि नामों से जाना जाता है।
ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि 28 मई, गुरुवार को है और इसी दिन स्कंद षष्ठी की पूजा होगी। भगवान कार्तिकेय की पूजा खासतौर से दक्षिण भारत में की जाती है। भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर नाम के राक्षस को मारा था। इसलिए उनकी पूजा दक्षिण भारत में खासतौर से की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि स्कंद षष्ठी व्रत को करने से दीर्घायु और प्रतापी संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही व्रती के जीवन से दुःख-दरिद्रता दूर हो जाती है।
आखिर क्यों कहा जाता है स्कंद षष्ठी
मां दुर्गा के 5वें स्वरूप स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है। वैसे तो नवरात्रि के 5वें दिन स्कंदमाता का पूजन करने का विधान है। स्कन्द देव की पूजा करने से स्कंदमाता भी प्रसन्न होती है और व्रती के सभी मनोरथ सिद्ध करती हैं।
इसके अलावा इस षष्ठी को चम्पा षष्ठी भी कहते हैं क्योंकि भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम भी पुकारते हैं और उनका प्रिय पुष्प चम्पा है। वैसे तो स्कंद षष्ठी पूरे साल में 12 और महीने में एक बार आती है। पर कार्तिक महीने की षष्ठी को विशेष रूप से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कार्तिकेय का जन्म हुआ था।
ये है स्कन्द षष्ठी शुभ मुहूर्त
इस दिन शुभ मुहूर्त मध्य रात्रि 12 बजकर 32 मिनट से शुरू होकर दिन के 11 बजकर 27 मिनट तक है। इस दौरान व्रती कार्तिकेय देव की पूजा उपासना कर सकते हैं।
ऐसे करें स्कंद षष्ठी की पूजा
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें। - इसके बाद स्नान-ध्यान कर सर्वप्रथम व्रत संकल्प लें।
- अब पूजा गृह में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा पूजा चौकी पर स्थापित करें।
- इसके बाद देवों के देव महादेव, माता पार्वती और कार्तिकेय की पूजा जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि से करें।
- अंत में आरती आराधना करें। शाम में कीर्तन-भजन और आरती करें। इसके पश्चात फलाहार करें।
- इसके अलावा बरगद के पत्ते और नीले फूल चढ़ा कर भगवान कार्तिकेय की श्रद्धा पूर्वक पूजा करें।
- भगवान कार्तिकेय की पूजा दीपक, गहनों, कपड़ों और खिलौनों से की जाती है। यह शक्ति, ऊर्जा और युद्ध के प्रतीक हैं।
- संतान के कष्टों को कम करने और उसके अनंत सुख के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
- इसके अलावा किसी प्रकार के विवाद और कलह को समाप्त करने में स्कंद षष्ठी का व्रत विशेष फलदायी है।
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