कोरोना के खौफ में भी यूपी के इस गांव के लोगों का चमगादड़ों से नहीं छूट रहा है मोह
by नीरज श्रीवास्तव, प्रतापगढ़ |कोरोना का खतरा बढ़ने के साथ ही चमगादड़ से उसकी उत्पत्ति होने के बारे में भी कई तरह की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी थीं। विश्वभर में लोग चमगादड़ों से भयभीत होने लगे लेकिन जिले की पट्टी तहसील के गोईं गांव के लोगों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
महामारी के इस दौर में भी गांववालों ने उन्हें भगाने का प्रयास नहीं किया। यहां तक कि एक शिकारी ने चमगादड़ पकड़ने के लिए पैसे देने का प्रस्ताव भी रखा पर उसे किसी ने तवज्जो नहीं दी। यह बात अलग है कि चमगादड़ों की आवाज व दुर्गंध से ग्रामीणों को परेशानी होती है।
ग्रामीणों के मुताबिक सात हजार से अधिक आबादी वाले गोईं गांव के पेड़ों पर करीब 50 वर्ष से चमगादड़ों का बसेरा है। इस समय पाकड़, गूलर, आम के छह-सात घने पेड़ों पर 15 हजार से अधिक चमगादड़ों का ठिकाना है। महामारी फैलने के साथ चमगादड़ के बारे में भी चर्चाएं शुरू हुईं तो गांववाले भी दहशत में थे लेकिन समय के साथ हालात बदलते गए। गांव वाले अब इस बात से पूरी तरह आश्वस्त हैं कि चमगादड़ों से उनका कोई नुकसान नहीं हो सकता। गांववालों का मानना है कि अन्य पक्षियों की तरह यह भी हैं। गर्मी से बेहाल होने के बाद चमगादड़ों का झुंड गांव के किनारे तालाब के पानी से प्यास बुझाकर फिर ठिकाने पर लौट आता है। गांव के दैलू पांडेय बताते हैं कि अब इनसे भय नहीं लगता बल्कि इनके बीच रहने की आदत हो गई है।
बंगाल के शिकारी को फटकार कर भगाया
गोईं के पेड़ों पर रहने वाले चमगादड़ों को पक़डने के लिए कुछ माह पूर्व बंगाल से दो शिकारी आए थे। वह गांववालों को चमगादड़ के बदले पैसे देने को तैयार थे लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें डांटकर भगा दिया।
आसपास के गांव में नहीं है चमगादड़
गोई के आसपास वाले गांव व कुछ दूर स्थित जंगल में एक भी चमगादड़ नजर नहीं आता। ऐसे में गांव के लोग इसे संयोग मानते हैं कि उनके गांव में चमगादड़ों का ठिकाना है। यही वजह है कि ग्रामीणों ने कभी उन्हें भगाने व हटाने के बारे में नहीं सोचा।
शाम होने पर पूरे गांव में मंडराते हैं
चमगादड़ों का झुंड पूरे दिन पेड़ की घनी पत्तियों के बीच छिपा रहता है लेकिन शाम होते ही यह निकलकर आसमान में मंडराने लगते हैं।