रश्मि बंसल का कॉलम / महिलाएं फाइनेंस को टैबू समझना बंद करें, कोरोना ने मौका दिया तो वे भी पैसों से दोस्ती करें, बचत के बीज बोएं

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रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर।

दैनिक भास्कर

May 27, 2020, 08:01 AM IST

हाल ही में एक दुखद समाचार पढ़ा। 51 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर की कोविड के कारण मौत हो गई। रिपोर्ट में उनकी बीवी और 12 साल के बच्चे की फोटो छापी गई थी। उनको देखकर मन उदास हुआ। मगर सबसे ज्यादा उदासी इसपर हुई, जो बिल्कुल आखिर लिखा थी: ‘मुझे इनके फाइनेंस, इंवेस्टमेंट के बारे में कोई ज्ञान नहीं। पता नहीं हमारा खर्च कैसे चलेगा।’ मोहतरमा पढ़ी-लिखी दिख रही थीं।

मगर देश की अधिकतर पढ़ी-लिखी औरतों की तरह, उन्होंने पैसे को टैबू सब्जेक्ट बनाया हुआ है। बैंक अकाउंट में उनका नाम होगा, पर इंटरनेट बैंकिंग का पासवर्ड पता नहीं होगा। पेटीएम, भीमएप से पैसे ट्रांसफर कैसे करते हैं, उनको कोई आइडिया नहीं। ये कोई मुश्किल काम नहीं पर माहौल ही कुछ ऐसा है।

अधिकतर घरों में एक अनरिटन रूल है: मनी मैटर मतलब आदमी का डोमेन। ज्यादातर कामकाजी महिलाओं के साथ भी ऐसा ही है। और उन्हीं की मर्जी से। शायद बचपन से घर में यही देखा कि पिताजी कमाते हैं और बैंक का काम करते हैं। तो कहीं न कहीं, सब-कॉन्सियशस लेवल पर ये हमारी साइकोलॉजी बन गई। ऐसा मेरा ऑब्जर्वेशन और तजुर्बा है।

पिछले दशक में बहुत सारे इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस आए हैं, उनका लेडीज़ को ज्ञान नहीं है। जानकारी इंटरनेट पर है तो सही, मगर क्या सही-क्या गलत समझ नहीं पाती हैं। चाहे वो हाउसवाइफ है या वर्किंग, घर के कामकाज का जिम्मा उसके सिर पर ही है। नौकर भी लेडी से ही पूछेगा, ‘भाभी, खाने में क्या बनाऊं।’ ऐसे में शायद कई महिलाओं ने सोचा कि फाइनेंस का काम हसबैंड को देखने दो। दूसरा ये कि औरत की कमाई क्या सचमुच उसकी होती है?

जो कंट्रोलिंग हसबैंड्स हैं वे उसे अपनी ही पूंजी समझकर इस्तेमाल करते हैं। और जहां हसबैंड अंडरस्टैंडिंग हैं, वहां औरत को अहसास है कि कहीं पैसों की वजह से कोई दरार ना पड़ जाए। तो चलो, उन्हें ही संभालने दो इन्वेस्टमेंट। कभी कुछ लॉस भी हो गया तो मुझे सुनना तो नहीं पड़ेगा! जो लड़कियां इंजीनियरिंग या एमबीए करके निकली हैं, उनका माइंडसेट थोड़ा बदला है। लेकिन शादी के बाद थोड़ी गड़बड़ हो जाती है। खासकर जब वे बच्चे के लिए जॉब छोड़ देती हैं। हसबैंड-वाइफ में किटकिट होती है। अगर उसी लड़की ने कुछ इन्वेस्टमेंट किए होते तो वो दिन ना देखना पड़ता। सेविंग्स की आदत कम उम्र से शुरू करें, ये स्कूल और कॉलेज में सिखाया जाए।

असल बात ये है कि घर के कामकाज में जेंट्स हाथ बंटाएं और फाइनेंस में लेडीज़ इंट्रेस्ट लें। कोरोना की वजह से कई घरों में थोड़ा चेंज आया है। मेरे क्लास के कई लड़के (यानी सीईओ) आजकल किचन में बर्तन मांजने का बोझ उठा रहे हैं। थोड़ा कंप्लेंट करते हैं पर हंसते हुए। यही मौका है कि बीवियां बैंकिंग और इन्वेंस्टमेंट की बातें समझ लें। ये कोई रॉकेट साइंस नहीं, कॉमन सेंस की चीज है।

शुरू में थोड़ा डर लगेगा, पर कुछ दिन बाद अहसास होगा कि मेंटल ब्लॉक था, जब आप इतनी एफिशिएंसी से घर-परिवार चला सकती हैं तो यहां भी अपना योगदान दें। कई बार आदमी लालच में गलत स्कीम में पैसा डाल देता है। जैसे चिट फंड्स या टिप्स के बेसिस पर वीक शेयर खरीदेगा। आपका स्वभाव उनसे अलग है, फालतू के रिस्क लेने से रोक सकते हैं।

अगर हसबैंड में पेशेंस नहीं है तो किसी ऑनलाइन कोर्स में भर्ती होकर सीख सकती हैं। जब आप विश्वास के साथ म्यूचुअल फंड्स की एनएवी के बारे में डिनर टेबल पर बात छेड़ेंगी, तो धीरे-धीरे उनको भी आपकी फाइनेंशियल आईक्यू पर विश्वास हो जाएगा।

तो बात एकदम छोटी-सी है। पैसों से दोस्ती करें और सेविंग्स के बीज समझदारी से बोएं। और एक दिन मीठे फल का आनंद जरूर मिलेगा। भगवान न करे अगर कभी बुरा दिन देखना पड़े, तो आप किसी की मोहताज न हों। अबला नारी नहीं, शक्तिरूपा बनें, जो हर परिस्थिति का दृढ़ता से सामना करने के लायक है।          

(यह लेखिका के अपने विचार हैं)