Inside Story: जानिए, इन दिनों भाजपा से ज्यादा कांग्रेस पर हमलावर क्यों हैं बहनजी?
by Dharmenderनई दिल्ली। कोरोना वायरस की महामारी के बीच रोजगार का संकट खड़ा होने के बाद प्रवासी मजदूर अपने-अपने राज्यों को वापस लौट रहे हैं। अपने घरों के लिए पैदल ही लौट रहे प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर पिछले दिनों देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में राजनीतिक माहौल भी काफी गर्माया। दरअसल कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रवासी मजदूरों के पैदल लौटने पर सवाल खड़े करते हुए यूपी सरकार को 1000 बसें देने की पेशकश की। मामले को लेकर दोनों दलों के बीच जमकर बयानबाजी हुई और आखिरकार कांग्रेस की बसों को वापस कर दिया गया। हालांकि इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस पर भाजपा के मुकाबले बीएसपी सुप्रीमो मायावती ज्यादा हमलावर दिखाईं दी। आखिर क्या वजह है कि मायावती की आंखों में इन दिनों भाजपा से ज्यादा कांग्रेस खटक रही है? आइए जानते हैं।
काफी लंबी है मायावती के कांग्रेस पर भड़कने की वजह
मायावती के पिछले कुछ दिनों के ट्वीट्स को देखें तो प्रवासी मजदूरों की बदहाली के लिए उन्होंने भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। मायावती अपने ट्वीट्स में सीधे तौर पर राहुल गांधी और प्रियंका को निशाने पर ले रही हैं। दरअसल इसके पीछे की वजह काफी लंबी है और पिछले कुछ समय के राजनीतिक घटनाक्रम इसकी गवाही भी देते हैं। बात चाहे, लोकसभा चुनाव के समय मध्य प्रदेश की गुना सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने चुनाव लड़ रहे बीएसपी उम्मीदवार का कांग्रेस को समर्थन देने की हो, या फिर राजस्थान में बीएसपी के सभी 6 विधायकों के टूटकर कांग्रेस में जाने की हो, मायावती को कांग्रेस से लगातार झटके मिल रहे हैं।
वोट बैंक कांग्रेस में खिसकने का डर
इनके अलावा कांग्रेस पर मायावती के बिगड़ने की सबसे बड़ी वजह 2022 का आने वाला यूपी विधानसभा चुनाव है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी यूपी में सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आ रही हैं। मुद्दा चाहे यूपी की कानून व्यवस्था का हो या फिर कोरोना वायरस की महामारी में मजदूरों की बदहाली का, सपा-बसपा के मुकाबले प्रियंका गांधी योगी सरकार पर सीधा हमला बोल रही हैं। ऐसे में कहीं ना कहीं, बसपा सुप्रीमो को अपना वोट बैंक कांग्रेस में खिसकने का डर है। दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद मायावती भाजपा को सत्ता में आने से नहीं रोक पाईं। इस चुनाव के बाद से भाजपा विरोधी वोट बैंक यूपी में विकल्प की तलाश में है और प्रियंका गांधी की सक्रियता इस वोट बैंक को अपनी तरफ खींच सकती है।
मायावती के कोर वोटर को साधने की कांग्रेस की कोशिश
यहां एक बात और अहम है कि मायावती का कोर वोटर दलित है और उसमें भी जाटव वर्ग। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन बनने और इस गठबंधन की हार के बाद से ही कांग्रेस इस वर्ग को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में जुटी है। पिछले लोकसभा चुनाव में ही अमेठी में राहुल गांधी के एक रोड शो के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ता नीले रंग के झंडों के साथ नजर आए थे। राहुल के रोड शो में न्यूनतम आय योजना के प्रचार के लिए तैयार नीले झंडे और टीशर्ट ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था। नीला रंग लंबे समय से उत्तर भारत की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी की पहचान रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद का पिछला एक साल अगर देखें तो प्रियंका गांधी ने भी इस वर्ग को साधने की कोशिश की है। फिर चाहे वो भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर से प्रियंका गांधी की मुलाकात हो या दलितों के साथ अपराध की घटनाओं पर उनके बीच जाने का मुद्दा हो।
बीएसपी को एक डर ये भी
राजनीतिक मुद्दों के जानकार, सतेंद्र यादव बताते हैं कि इस समय जो प्रवासी मजदूर यूपी में अपने घरों को लौट रहे हैं, ये वो वर्ग है जो 100 फीसदी वोट करने के लिए जाना जाता है। प्रियंका गांधी ने जिस तरह प्रवासी मजदूरों के मुद्दे को उठाया है, उससे सबसे ज्यादा परेशानी अगर बीएसपी को हो रही है तो इसकी बड़ी वजह ये है कि यूपी में इस वर्ग की भाजपा से नाराजगी कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। कांग्रेस अगर यूपी में मजबूत हुई तो स्वाभाविक तौर पर सबसे ज्यादा नुकसान बीएसपी को ही होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखें तो हार के बावजूद कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा है। इसके अलावा यूपी में मायावती को एक डर अपने नेताओं के टूटकर कांग्रेस में शामिल होने का भी है। पिछले लोकसभा चुनाव में ही कांग्रेस ने कभी मायावती के खासमखास रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बिजनौर सीट से मैदान में उतारा था।
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