ना लॉकडाउन, ना की ज्यादा टेस्टिंग, फिर भी कोरोना से कैसे जीत गया जापान?25 May 2020, 12:241 / 10जापान में तेजी से घटते कोरोना वायरस के मामलों को देखते हुए इमरजेंसी खत्म करने का फैसला किया गया है. हैरत की बात ये है कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए जापान ने अपने नागरिकों पर किसी भी तरह के सख्त प्रतिबंध नहीं लगाए थे. यहां सैलून से लेकर रेस्टोरेंट तक सब कुछ खुला हुआ था. यहां चीन जैसा कोई हाईटेक ऐप भी नहीं बनाया गया जो लोगों को ट्रैक कर सके.2 / 10जापान में कोई रोग नियंत्रण केंद्र भी नहीं है. इतना ही नहीं यहां बहुत ज्यादा टेस्ट पर भी जोर नहीं दिया गया. आपको जानकर हैरत होगी कि जापान ने अपनी आबादी का सिर्फ 0.2 फीसदी टेस्ट किया है, जो विकसित देशों में टेस्ट के सबसे कम दरों में से एक है. यहां कोरोना से मरने वालों को आंकड़ों में तेजी से कमी आ रही है. आखिर ऐसा क्या है जिससे जापान ने अपने देश में उस स्तर पर संक्रमण नहीं फैलने दिया.3 / 10वासेदा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मिकहितो तनाका का कहना है, 'मौत की संख्या देखते हुए, कहा जा सकता है कि जापान कोरोना वायरस को रोकने में सफल रहा लेकिन विशेषज्ञ भी इसका कारण नहीं जानते हैं.' यहां की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मास्क पहनने के कल्चर, मोटापे की कम दर से लेकर स्कूलों को जल्द बंद करने जैसे कई निर्णय यहां संक्रमण रोकने में मददगार रहे.4 / 10कांटेक्ट ट्रेसिंगजापान के विशेषज्ञ भी कोरोना से लड़ने में अपने देश के कांटेक्ट ट्रेसर की भूमिका की सराहना करते हैं. जापान में जनवरी में कोरोना वायरस का पहला केस आने पर ही कांटेक्ट ट्रेसर्स ने अपना काम करना शुरू कर दिया था. 2018 में जापान में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में 50,000 से अधिक नर्सों को नियुक्त किया गया था, जो इंफेक्शन ट्रेस करने में अनुभवी थीं.5 / 10आम दिनों में ये नर्स इन्फ्लूएंजा और टीबी जैसे सामान्य संक्रमणों को कम करने पर काम करती हैं. होक्काइदो यूनिवर्सिटी में सार्वजनिक नीति के एक प्रोफेसर काज़ुटो सुज़ुकी ने कहा, 'यह सिंगापुर की तरह ऐप-आधारित प्रणाली नहीं है, लेकिन फिर भी, यह बहुत उपयोगी रहा है.' जहां US और UK जैसे देशों ने अब जाकर कांटेक्ट ट्रेसर्स की भर्ती करनी शुरू की है वहीं जापान ने ट्रैंकिंग का काम पहला मामला आने पर ही शुरू कर दिया था. ये विशेषज्ञ संक्रमण से निपटने के लिए समूहों, क्लबों या अस्पतालों जैसी जगहों पर नजर रखते हैं ताकि पहला मामला पता चलते ही इसे फैलने से रोका जा सके.6 / 10बर्निंग कारपूरी दुनिया का ध्यान पहली बार जापान पर तब गया था जब फरवरी के महीने में यहां डायमंड प्रिंसेस जहाज में सैकड़ों लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे. तमाम आलोचनाओं के बावजूद जहाज को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उसने जापान के विशेषज्ञों को इस महामारी के शुरुआती आंकड़े उपलब्ध कराए, जैसे कि यह वायरस कैसे फैलता है, साथ ही इस घटना को सार्वजनिक चेतना में बदल दिया गया.7 / 10इस जहाज ने जापान के लोगों में जागरूकता लाने का काम किया. प्रोफेसर तनाका ने कहा, 'जापान के लोगों के लिए ये जहाज उनके घर के बाहर खड़ी बर्निग कार की तरह था. आप कह सकते हैं कि अन्य देशों के विपरीत जापान का विशेषज्ञ नेतृत्व वाला दृष्टिकोण रहा है.'8 / 10थ्री सी का फार्मूलाजापान में कोरोना वायरस के कम मामलों का श्रेय विशेषज्ञ यहां के थ्री सी फार्मूला को भी देते हैं. यहां थ्री सी का मतलब है- Closed spaces, Crowded spaces and Close-contact settings. यानी बंद स्थान, भीड़-भाड़ वाले स्थान और नजदीकी संपर्क से दूर रहना. लोगों को एक-दूसरे से पूरी तरह दूर रखने की बजाय यहां थ्री सी फार्मूला ही अपनाया जाता है.9 / 10होक्काइदो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर काज़ुटो सुज़ुकी ने कहा, 'सोशल डिस्टेंसिग शायद काम कर जाए लेकिन यह सामान्य जीवन को बनाए रखने में वास्तव में मददगार नहीं है. इसकी बजाय थ्री सी फार्मूला उसी प्रभाव के साथ अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण वाला और ज्यादा असरदार है.'10 / 10वायरस का कम खतरनाक रूपशिगिरू ओमी जैसे कई संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने यह संभावना जताई है कि जापान में फैलने वाला वायरस स्ट्रेन कुछ अलग हो सकता है जो अन्य देशों के मुकाबले कम खतरनाक है. अमेरिका में लॉस अलमोस नेशनल लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं ने एक डेटाबेस में कोरोना वायरस के भिन्न रूपों पर अध्ययन किया. स्टडी में पता चला कि यूरोप से फैलने वाले वायरस के कई रूप थे जो एशिया के कोरोना वायरस से अलग थे. हालांकि इस स्टडी को समीक्षा से पहले ही कई तरह की आलोचना झेलनी पड़ी.