Ramayan 24th May : श्री राम को लुभाने पहुंची शूपर्णखा की लक्ष्मण ने काटी नाक, बहन की हालत देख क्रोधित हुआ राक्षस खर
Ramayan : राम के बाद लक्ष्मण को लुभाने पहुंची शूपर्णखां से वो कहते हैं कि मैं तो श्रीराम चंद्र जी का दास हूं, ऐसे में क्या तुम क्या दासी बनकर रहोगी। लक्ष्मण और राम को शूर्पणखा कहती है कि तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुमने मेरा प्रस्ताव ठुकराया। ऐसे में शूर्पणखा कहती है कि एक शूद्र स्त्री के लिए तुम मुझे ठुकरा रहे हो? मैं इसे खा जाऊंगी। तभी लक्ष्मण शूर्पणखा की नाक काट देते हैं।
by जनसत्ता ऑनलाइनRamayan : रामायण में पंचवटी पहुंच कर लक्ष्मण शूपर्णखां से कहते हैं कि मैं तो श्रीराम चंद्र जी का दास हूं, ऐसे में क्या तुम क्या दासी बनकर रहोगी। लक्ष्मण और राम को शूर्पणखा कहती है कि तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुमने मेरा प्रस्ताव ठुकराया। ऐसे में शूर्पणखा कहती है कि एक शूद्र स्त्री के लिए तुम मुझे ठुकरा रहे हो? मैं इसे खा जाऊंगी। तभी लक्ष्मण शूर्पणखा की नाक काट देते हैं।
वहीं इससे पहले शूर्पणखा राम जी को अपना परिचय़ देती है, कि मैं लंकेश की बहन है। वह श्रीराम से उनका परिचय पूछती हैं। श्रीराम बताते हैं कि वह राजा दशरथ पुत्र है-श्रीराम। ऐसे में शूर्पनखा लक्ष्मण को भी देखती हैं औऱ दोनों भाइयों को देख कर वह कहती हैं कि वह उनसे विवाह करना चाहती हैं। जब उन्हें पता चलता है कि श्रीराम तो विवाहित हैं, वैसे ही वह लक्ष्मण के पीछे आ जाती हैं।
इससे पहले लक्ष्मण राम जी से कहते हैं कि उन्हें एक हीन भावना परेशान करती है, वह कहते हैं कि ‘भैया मैं आप जैसा क्यों नहीं हूं, मेरा उग्र स्वभाव क्यों हैं’ मेरे खून में उबाल क्यों आता है? श्री राम कहते हैं तुम बाहर से सख्त हो लेकिन अंदर से नर्म। भूल चूक औऱ भ्रम में भटक जाना, मानव ऐसे हो जाते हैं। श्री राम ने वनवास में 10 वर्ष पूरे लिए हैं। लक्ष्मण प्रभु राम से सवाल पूछते हैं कि भैया इन 10 वर्षों में हम न जाने कितने मुनियों और महात्माओं से मिले हैं, अब तो उनका नाम तक याद रखना मुश्किल है। जिसपर राम, लक्ष्मण से कहते हैं कि नाम तो बाहरी आवरण हैं, हमें लोगों को केवल उनके गुणों को याद करना चाहिए क्योंकि शरीर तो चला जाता है और केवल गुण ही रह जाते हैं।
श्री राम महामुनि की कुटिया में जाकर उनके दर्शन करते हैं। प्रभु को कुटिया में देख ऋषि भावुक हो जाते हैं और प्रभु के पैर छुकर कहते हैं कि आज श्री राम के आ जाने से उनका जीवन धन्य हो गया है। लेकिन मदुरता श्री राम का आचरण है। इस लिए वो मुनिवर से कहते हैं। आपके दर्शन पाने से मैं धन्य हो गया मुनिश्रेष्ठ मैं तो सिर्फ एक तुच्छ प्राणी हूं।