आसान नहीं थी सचिन पायलट की प्रेम डगर, फारूक की बेटी से यूं हुई शादी

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14 फरवरी को दुनिया भर में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है. ऐसी कई लवस्टोरीज हैं जो प्रेम की दुनिया में एक मिसाल बन गई. इनमें से एक है राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट और सारा अब्दुल्ला की लव स्टोरी. इनके रास्ते में तमाम चुनौतियां आईं लेकिन दोनों ने हार नहीं मानी और अपने प्रेम को मुकाम तक पहुंचाया.

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सचिन और सारा दोनों ही मजबूत राजनीतिक परिवार से आते हैं लेकिन दोनों ने अपनी प्रेम कहानी का दम राजनीतिक परिवारों की मजबूरियों में घुटने नहीं दिया. सचिन का हिंदू और सारा का मुसलमान होना हमेशा की तरह एक प्रेम कहानी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बना. सचिन पायलट दिवंगत कांग्रेस नेता राजेश पायलट के बेटे हैं.

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सचिन पायलट का जन्म यूपी के सहारनपुर में हुआ. सेंट स्टीफन कॉलेज से स्कूलिंग और ग्रैजुएशन करने के बाद वह यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्निसल्वानिया के वार्टन स्कूल ऑफ बिजनेस से MBA करने के लिए विदेश चले गए. वहीं सारा पायलट जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बेटी और उमर अब्दुल्ला की बहन हैं. सारा के दादा शेख अब्दुल्ला खुद एक लोकप्रिय नेता थे.

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सारा साल 1990 तक कश्मीर में अपने परिवार के साथ रहीं. उसके बाद फारूक अब्दुल्ला ने घाटी में चल रहे तनाव की वजह से सारा को मां के साथ लंदन भेज दिया. लंदन में ही सारा और सचिन की पहली मुलाकात हुई थी. सचिन और सारा के पिता दोनों दोस्त थे और एक-दूसरे के परिवार से परिचित थे. हालांकि, दोनों परिवार के सदस्य एक-दूसरे से नहीं मिले थे.

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एमबीए करने के दौरान सचिन की दोस्ती सारा से हुई. समय के साथ दोनों की दोस्ती गहरी होती चली गई और फिर प्यार में बदल गई. सारा ने सचिन को अपनी मां से मिलवाया. सारा के पैरेंट्स को सचिन शुरू से ही पसंद थे. सचिन का व्यक्तित्व और उनकी मुस्कान उनका दिल जीतने के लिए काफी थी.

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सारा के परिवार को इनकी दोस्ती से कई ऐतराज नहीं था. हालांकि दोनों को एक-दूसरे के साथ ज्यादा वक्त बिताने का मौका नहीं मिला. कुछ महीनों के अंदर ही सचिन ने अपना कोर्स खत्म किया और भारत लौट आए जबकि सारा इंग्लैंड में ही रहीं.

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जब दोनों एक-दूसरे से दूर हुए तो उन्हें अपने प्यार का और भी ज्यादा एहसास हुआ. दूरियां प्यार को और गहरा बना देती है और सचिन-सारा के मामले में भी यही हुआ. दोनों एक-दूसरे से ईमेल्स और फोन कॉल्स के जरिए बात करते थे.

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दोनों को अलग हुए तीन साल बीत चुके थे. वक्त के साथ-साथ उनका प्यार गहराता चला गया और दोनों ने एक-दूसरे का जीवन भर साथ निभाने का फैसला कर लिया. लेकिन आने वाला वक्त इतना आसान नहीं था.

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दोनों की पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग थी और शादी के लिए घर वालों को मनाना बिल्कुल भी आसान काम नहीं था. सचिन एक गुर्जर परिवार से आते हैं जबकि सारा एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से थीं. दोनों को पता था कि शादी के लिए परिवारों की रजामंदी आसानी से नहीं मिलेगी.

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सचिन ने आखिरकार अपनी मां को सारा के बारे में बता दिया. उम्मीद के मुताबिक, सचिन की मां ने इस रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया. सचिन का पूरा परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. हालांकि, सचिन ने किसी तरह अपने परिवार वालों को मना लिया.

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लेकिन चुनौतियां सारा के लिए ज्यादा थीं. सारा के पिता ने इस रिश्ते को कुबूल करने से मना कर दिया. सारा अपने पिता के बहुत करीब थीं इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन उनके पिता इस शादी के लिए मान जाएंगे.

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सारा ने कई दिनों तक अपने पिता को मनाने की कोशिश की. रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह कई दिनों तक रोती रहीं लेकिन उनके पिता फारूक पर कोई असर नहीं पड़ा. वह अपने फैसले पर अडिग रहे.फारूक सचिन को पसंद करते थे और सारा के लिए शायद उन्हें इससे बेहतर रिश्ता नहीं मिलता लेकिन सामाजिक और राजनीतिक दबाव के आगे वो भी मजबूर थे.

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जब सचिन और सारा का रिश्ता सार्वजिनक हुआ तो अब्दुल्ला के खिलाफ घाटी में कैंपेन चलने लगे. यहां तक कि उनकी पार्टी के ही कुछ विधायक इस रिश्ते के खिलाफ हो गए. विरोधी कहने लगे कि एक मुस्लिम पुरुष अपने धर्म से बाहर शादी कर भी सकता है लेकिन इस्लाम एक मुस्लिम महिला को एक गैर मुस्लिम से शादी करने की इजाजत बिल्कुल नहीं देता है.

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सचिन और सारा ने कुछ महीनों तक सब कुछ शांत होने का इंतजार किया लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हो गया कि महीनों-सालों बाद भी हालात नहीं बदलेंगे. विरोध-प्रदर्शन अब भी जारी थे. फारूक अब्दुल्ला के पास भी अपने पार्टी विधायकों की जिद के सामने आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.

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सचिन और सारा को फैसला लेना ही था. उनके पास दो ही विकल्प थे- एक या तो वे अपने परिवार वालों की मर्जी के आगे झुक जाते और खुद की जिंदगी किस्मत के हवाले कर देते. दूसरा अपने दिल की बात सुनते हुए शादी के बंधन में बंध जाते.

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सारा और सचिन ने दूसरा विकल्प ही चुना. जनवरी 2004 में दोनों ने एक साधारण से समारोह में शादी कर ली. इस शादी में बहुत कम लोगों को आमंत्रित किया गया था. अब्दुल्ला परिवार ने इस शादी का बहिष्कार किया. हालांकि, सारा को अंतिम पलों तक उम्मीद थी कि उनका परिवार मान जाएगा और सब कुछ ठीक हो जाएगा.

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सारा के लिए यह समय बहुत ही मुश्किल भरा था. शादी के सबसे खास दिन पर भी उन्हें अपने घर के किसी सदस्य का साथ नहीं मिला. सारा के अकेलेपन को दूर करने के लिए सचिन के परिवार ने पूरी कोशिश की. सचिन ने भी सारा का हर मौके पर साथ दिया.

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सारा अब्दुल्ला सारा पायलट बन गईं और दोनों जिंदगी के एक नए पड़ाव में पहुंच गए. वक्त गुजरने के साथ फारूक अब्दुल्ला की नाराजगी भी दूर हो गई और बाप-बेटी अतीत की कड़वी यादें भुलाते हुए फिर से एक साथ आ गए.

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सचिन शादी के कुछ महीनों बाद ही राजनीति में आ गए. वहीं, सारा यूएन में महिला सशक्तीकरण के लिए काम करती रहीं. सचिन और सारा के दो बेटे हैं- आरान और वेहान. व्यस्त होने के बावजूद, सारा-सचिन एक-दूसरे के लिए वक्त निकाल लेते हैं. वे एक साथ घूमने जाते हैं और फिल्म देखते हैं.

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सचिन और सारा के लिए धर्म कभी मसला नहीं रहा. सारा की मां एक ईसाई महिला हैं, सारा खुद मुस्लिम हैं और सचिन का परिवार हिंदू, लेकिन परिवार में मजहब को लेकर कोई समस्या नहीं हुई. सचिन-सारा की कहानी हर प्यार करने वाले के लिए एक उदाहरण है. जीवनसाथी बनने के लिए बस प्रेम होना चाहिए, धर्म और जाति की कोई भूमिका नहीं होती.