नेताओं की हिरासत / फारूक की बेटी सारा बोलीं- कश्मीरियों को भी भारतीयों की तरह अधिकार मिलें; सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन से जवाब मांगा
by Dainik Bhaskar- सारा अब्दुल्ला ने 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पीएसए के तहत उमर की हिरासत को चुनौती दी
- याचिका में कहा- यह अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन, सरकार की तरफ से विरोधियों की आवाज दबाने की कोशिश
Dainik Bhaskar
Feb 14, 2020, 04:13 PM IST
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की हिरासत के खिलाफ उनकी बहन सारा पायलट की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी कर 2 मार्च तक जवाब मांगा है। सुनवाई के बाद सारा ने कहा, “यह बंदी प्रत्यक्षीकरण का मामला है, इसलिए उम्मीद है कि हमें जल्द राहत मिलेगी। हमें न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। हम यहां पहुंचे, क्योंकि हम चाहते हैं कि कश्मीरियों को भी बाकी भारतीय नागरिकों की तरह ही अधिकार मिलें। हम उसी दिन का इंतजार कर रहे हैं।”
सारा ने 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पब्लिक सेफ्टी एक्ट 1978 के तहत उमर की हिरासत को चुनौती दी थी। अपनी याचिका में उन्होंने कहा था- उमर की हिरासत उनकी अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन है। यह सरकार की तरफ से अपने विरोधियों की आवाज दबाने की कोशिश है।
उमर और महबूबा पर पीएसए
जम्मू कश्मीर के दो बड़े नेता उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर 6 फरवरी को पीएसए के तहत केस दर्ज किया गया था। दोनों की हिरासत की अवधि इसी दिन खत्म हो रही थी। इन दोनों को अगस्त, 2019 से सरकारी गेस्ट हाउस में नजरबंदी में रखा गया है। पुलिस ने डॉजियर में लिखा कि उमर अब्दुल्ला का जनता पर खासा प्रभाव है, वे किसी भी कारण के लिए जनता की ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं। पुलिस ने कहा- महबूबा ने राष्ट्रविरोधी बयान दिए और वे अलगववादियों की समर्थक हैं।
क्या है पीएसए?
पीएसए के तहत सरकार किसी भी व्यक्ति को भड़काऊ या राज्य के लिए नुकसानदेह मानकर हिरासत में ले सकती है। यह कानून आदेश देने वाले अफसर के अधिकार क्षेत्र की सीमा के बाहर व्यक्तियों को हिरासत में लेने की अनुमति देता है। कानून के सेक्शन 13 के मुताबिक, हिरासत में लेने का आदेश केवल कमिश्नर या डीएम जारी कर सकता है। इसमें कोई भी यह कहने के लिए बाध्य नहीं है कि कानून जनहित के खिलाफ है।
कानून के दो सेक्शंस हैं। एक- लोगों के लिए खतरा देखते हुए, इसमें बिना ट्रायल के व्यक्ति को 3 महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है। इसे 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है। दूसरा- राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा, इसमें दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।