बाहुबलियों पर कानून बदला तो सियासत भी बदली, कसा शिकंजा तो कई भेजे गए जेल
by पटना। हिन्दुस्तान ब्यूरोकहते हैं कानून से बड़ा और ताकतवर कोई नहीं होता। बिहार की राजनीति में तीन दशक तक राज करनेवाले बाहुबलियों की बाद के दिनों में मुश्किलें बढ़ती चली गईं। कानून बदला तो उनपर शिकंजा भी कसने लगा। सलाखों के पीछे रहकर चुनाव जीतनेवाले बाहर रहकर भी चुनावी अखाड़े से दूर हो गए। वहीं कभी एकक्षत्र राज करनेवाले कई बाहुबली सलाखों के पीछे सजा काट रहे हैं।
सजायाफ्ता के चुनाव लड़ने पर रोक के बाद बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव देखने को मिला। कई शूरमा जो संसद तक पहुंचने में कामयाब हो गए थे वह बाहर रहकर भी चुनाव में नहीं उतर पाए। इसमें बड़ा नाम सूरजभान सिंह का है। सजायाफ्ता होने के चलते सूरजभान सिंह पिछले दो लोकसभा से चुनाव नहीं लड़ पाए। हालांकि उनकी राजनीति विरासत को पहले पत्नी और अब भाई सांसद के तौर पर संभाल रहे हैं।
सजा ने रोकी राह जेल में बीत रहे दिन
बाहुबल की बदौलत चुनावों में परचम लहरा चुके आधा दर्जन से ज्यादा पूर्व सांसद और विधायकों को कानून ने राजनीति से दूर कर दिया है। सजायाफ्ता होने के चलते जहां चुनावी राजीनित में बाहुबलियों पर बैन लग गया है वहीं सलाखों के पीछे उनकी जिंदगी भी कट रही है। कई बार सांसद रहे शहाबुद्दीन फिलहाल तिहाड़ जेल में कैद हैं। सजायाफ्ता होने के चलते उन्होंने पत्नी को दो दफे सीवान से चुनाव लड़ाया लेकिन जीत नहीं मिली। पूर्व सांसद आनंद मोहन भी आजीवन कारावास की सजा होने के चलते जेल में हैं और चुनाव नहीं लड़ पा रहे। पत्नी लवली आनंद राजनीति में सक्रिय जरूर हैं। यही हाल महाराजगंज के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह का भी है। वह भी जेल में हैं। बेटे को उपचुनाव में विधायक बनाने में कामयाब हुए पर बाद में हार का सामना करना पड़ा। हत्या के एक मामले में पूर्व सांसद विजय कृष्ण पटना के बेऊर जेल में सजा काट रहे हैं। पूर्व विधायक राजबल्लभ भी दुष्कर्म के मामले में सजायाफ्ता हैं और सलाखों के पीछे जिंदगी कट रही है।
दूसरी वजहों से नहीं लड़ा चुनाव
कई बाहुबली ऐसे हैं जो न तो अभी सजायाफ्ता है न ही उन्होंने चुनाव लड़ा। पूर्व सांसद रामा सिंह को सजा नहीं हुई है पर पिछले लोकसभा में वह चुनावी मैदान से दूर रहे। रामा सिंह ने किन कारणों से चुनाव नहीं लड़ा इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया। इसी तरह कई दफे विधायक रहे सुनील पाण्डेय की है। पीरो और परिसिमन के बाद तरारी से विधायक बने सुनील पाण्डेय ने 2015 के विधानसभा चुनाव में खुद किस्मत आजमाने की बजाए पत्नी को चुनावी मैदान में उतारा। पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला कभी सजायाफ्ता थे पर अब बरी हो चुके हैं। इसी कड़ी में पूर्व विधायक राजन तिवारी का भी नाम जुड़ जाता है। भाई को विधानसभा तक पहुंचाने वाले राजन तिवारी ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी की थी पर आखिरी वक्त में वह मैदान से दूर हो गए।