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Economic Survey 2020: बढ़ती अर्थव्यवस्था की जरूरत के आगे बौने हैं भारतीय बैंक

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संसद में शुक्रवार (31 जनवरी) को पेश आर्थिक समीक्षा 2019-20 में देश की अर्थव्यवस्था की बढ़ती आवश्यकताओं के आगे भारतीय बैंकों के छोटे आकार (बौनेपन) पर चिंता जाहिर की गयी है। समीक्षा में कहा गया कि देश को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिये सरकारी बैंकों को प्रभावी होना चाहिए तथा ऋण कम करने के बाजाय उन्हें आर्थिक वृद्धि में सहायक होना चाहिए।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद भी 2014 तक गरीब आबादी का बड़ा हिस्सा बैंकिंग सेवाओं से वंचित बना रहा। समीक्षा में सचेत किया गया कि सरकारी बैंकों की अक्षमता के कारण विशेष अवसरों को भुना सकने की देश की क्षमता पर गंभीर असर पड़ सकता है।

समीक्षा के अनुसार, भारतीय बैंकिंग में बाजार हिस्सेदारी का करीब 70 प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के पास है। यदि सरकारी बैंक भी भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार के अनुपात में बड़े हों तो विश्व के शीर्ष 100 बैंकों में सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ही नहीं कम से कम छह भारतीय सरकारी बैंक होने चाहिए।

समीक्षा में बैंकिंग की सभी क्रियाप्रणालियों में वित्तीय प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने तथा कर्मचारियों को शेयर में हिस्सेदारी देने का सुझाव दिया गया है। समीक्षा में ऋण संबंधी निर्णयों विशेषकर बड़े कर्जदाताओं के मामले में वृहद सूचनाओं, कृत्रिम मेधा और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करने के लिए जीएसटी नेटवर्क जैसा निकाय गठित करने का भी सुझाव दिया गया। इसमें सरकारी बैंकों के नेटवर्क पीएसबीएन को कर्जदारों की विस्तृत निगरानी के लिये प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने की जरूरत पर बल दिया गया है।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि सरकारी बैंकों में केंद्र सरकार द्वारा पूंजी डालने के माध्यम से करदाताओं की लगभग 4,30,000 करोड़ रुपए की धनराशि निवेश की गई। वर्ष 2019 में बैंकों में करदाताओं को निवेश पर औसतन 23 प्रतिशत का घाटा हुआ।