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2020 Union Budget: इस बार मिडल क्लास को राहत की उम्मीद

Budget 2020: अबकी बार-टैक्स पर वार, मिडिल क्लास पर फोकस करें सरकार

Union Budget 2020: पिछले कई बजट से मोदी सरकार का फोकस मिडि‍ल क्लास पर नहीं रहा है. किसानों, कॉरपोरेट पर इसके पहले ध्यान दिया गया. इसलिए इस बार वित्त मंत्री को मिडल क्लास पर खास ध्यान देना चाहिए.

मोदी सरकार 2.O का पिछले साल पेश अंतरिम बजट किसानों और गरीबों पर केंद्रित था. इसके बाद जुलाई 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना पहला बजट पेश किया तो इसमें कॉरपोरेट और बिजनेस जगत को राहत देने वाली कई घोषणाएं की गईं. इसलिए इस बार के बजट में इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं दिखता कि पहले दो बार उपेक्ष‍ित रखे गए वर्ग यानी मिडल क्लास पर फोकस किया जाए.

क्यों मिडल क्लास पर फोकस है जरूरी

पिछले 4-5 साल से अर्थव्यवस्था की सुस्ती की वजह से आमदनी ठहर जाने और महंगाई की वजह से मिडल क्लास पर सबसे ज्याद चोट पड़ी है. मध्यम वर्ग को राहत देने का काफी समय से इंतजार है. केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट के लिए टैक्स तो घटाकर 15 से 22 फीसदी कर दिया गया, इसलिए व्यक्तिगत आयकर को इतना ऊंचा (30 फीसदी तक) रखना अतार्किक ही लगता है.

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मांग/खपत पिछले सात साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है. इसलिए व्यक्तिगत आयकर में कमी करके लोगों की जेब में ज्यादा पैसा पहुंचाना एक अच्छा तरीका हो सकता है. पीयूष गोयल के अंतरिम बजट या निर्मला के पहले बजट से अर्थव्यवस्था में मांग और निवेश चक्र को बढ़ाने में कोई मदद नहीं मिली है. इसलिए वित्त मंत्री के लिए यह जरूरी हो गया है कि इस बार मध्यम वर्ग के भरोसे को बढ़ाएं. आइए इस पर विचार करते हैं कि वित्त मंत्री इस बार के बजट में क्या कर सकती हैं.

बेसिक छूट (basic exemption limit) की सीमा बढ़ाएं

आयकर के मामले में बुनियादी छूट की सीमा साल 2014 से ही 2.5 लाख रुपये तक रही है. पिछले साल इसे बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया गया, लेकिन यह उन्हीं लोगों के लिए जिनकी आय 5 लाख रुपये तक है. सरकार 2.5 से 5 लाख रुपये तक की आय पर लगने वाले कर के बदले एकमुश्त रिबेट देती है.

इसे सबके लिए बढ़ाकर 5 लाख रुपये तक की आय को पूरी तरह से टैक्स फ्री करना चाहिए. इससे देश की एक बड़ी जनसंख्या की जेब में खर्च करने के लिए पैसा बचेगा. इसका सीधा फायदा करीब 5.5 करोड़ टैक्सपेयर्स को होगा.

स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट बढ़े

साल 2018 में स्टैंडर्ड डिडक्शन को फिर से लाया गया ताकि वेतनभोगी और कारोबारी वर्ग को बराबरी के स्तर पर रखा जाए. इसकी सीमा 50 हजार रुपये तक की गई है, जिसे बढ़ाकर 75,000 रुपये कर देना चाहिए. इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति की सालाना सैलरी में से पहले 50 हजार रुपये की राश‍ि को निश्चित रूप से घटाकर ही उसके बाद टैक्स का आकलन किया जाता है.

मेडिकल इम्सबर्समेंट और ट्रैवल अलाउंस पर फिर मिले छूट

साल 2018 में बजट में स्टैंडर्ड डिडक्शन फिर से लाने के साथ ही मेडिकल इम्सबर्समेंट और ट्रैवल अलाउंस पर फिर मिलने वाले टैक्स छूट को खत्म कर दिया गया. इन्हें फिर से वापस लाना चाहिए और इनकी सीमा भी ज्यादा रखनी चाहिए. लोगों का स्वास्थ्य और ट्रैवल का खर्च बढ़ता जा रहा है, इसलिए मेडिकल रीइम्बर्समेंट 50,000 रुपये सालाना तक और 3,000 तक मासिक ट्रैवल अलाउंस को टैक्सेबल आय के दायरे से बाहर रखना चाहिए.

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स छूट की सीमा अगर बढ़ाई गई तो यह मध्यम वर्ग के लिए बड़ी राहत होगी. हालांकि सरकार के खजाने की तंगी को देखते हुए यह थोड़ा मुश्किल लग रहा है. 1 अप्रैल, 2018 से शेयरों पर होने वाले कैपिटल गेन्स को 1 लाख रुपये तक कर मुक्त किया गया है. एक साल या उससे ज्यादा कोई शेयर रखने पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है. इस बात की मांग की जा रही है कि इस छूट सीमा को बढ़ाकर 2 लाख रुपये तक किया जाए.

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जीएसटी में कमी

वैसे तो जीएसटी का रेट तय करने का अध‍िकार जीएसटी काउंसिल को है. लेकिन वित्त मंत्री बजट में यह संकेत दे सकती हैं कि सरकार जीएसटी दरों को सिर्फ तीन ब्रैकेट में रखना चाहती है, जैसा कि इसे लागू करते समय सरकार की सोच थी.