Economic Survey 2020: GDP ग्रोथ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है? सर्वे रिपोर्ट से मिला ये जवाब
Economic Survey of India: आम बजट पेश होने से पहले वर्ष 2019-2020 का आर्थिक सर्वे सदन के पटल पर रखा जा चुका है. इस रिपोर्ट में जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों को लेकर उठे सवाल का भी जवाब दिया गया है.
- GDP आंकड़ों को लेकर उठ रहे थे सवाल
- आर्थिक सर्वे रिपोर्ट में दिया गया है जवाब
वर्ष 2019-2020 का आर्थिक सर्वे (Economic Survey 2020) पेश किया जा चुका है. इस सर्वे रिपोर्ट में देश की आर्थिक स्थिति के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसके साथ ही सर्वे रिपोर्ट में जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए जाने विवाद का भी जिक्र किया गया है.
दरअसल, बीते कुछ समय से जीडीपी आंकड़ों को लेकर सवाल उठ रहे थे. कहा जा रहा था कि भारत की जीडीपी ग्रोथ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है. अब इस सवाल का जवाब आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट में दिया गया है. इसमें कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि के अनुमान को न तो बढ़ा-चढ़ाकर और न ही कमतर करके आंका गया है और आंकड़ों को लेकर जो चिंता जतायी जा रही है, वह अनुचित है. सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘जीडीपी निवेश का बेहतरीन चालक है. इसीलिए यह महत्वपूर्ण है कि जीडीपी का आकलन जितना संभव, हो उतना सही तरीके से किया जाए.’’
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समीक्षा में कहा गया है कि देश की जीडीपी वृद्धि के गलत अनुमान के बारे में कोई सबूत नहीं मिला है. आंकड़ों के विश्लेषण को लेकर सांख्यिकीय और अर्थमीतिय विश्लेषण काफी सावधानीपूर्वक किये गए लेकिन इसमें अनुमान में गड़बड़ी के कोई साक्ष्य नहीं पाये गए. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश के आंकड़ों की तुलना करने में भ्रमित वाले कारकों के कारण गलती की गुंजाइश रहती है. ऐसे में इस प्रकार के विश्लेषण को सावधानीपूर्वक किये जाने की जरूरत है.
सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि जो मॉडल 2011 के बाद भारत की जीडीपी वृद्धि के अनुमान में 2.77 प्रतिशत के गलत तरीके से अधिक अनुमान की बात करते हैं, वे सैंपल में शामिल 95 देशों में 51 के मामले में जीडीपी वृद्धि का गलत अनुमान व्यक्त करते हैं. निष्कर्ष यह है कि भारत की जीडीपी वृद्धि के अनुमान को लेकर जो चिंता जताई गई है, वह निराधार है.
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क्यों देनी पड़ी सफाई?
दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने हाल में कहा था कि 2011-12 से 2016-17 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर को करीब 2.5 प्रतिशत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है. इसका कारण जीडीपी आकलन के तौर-तरीकों में बदलाव है.
अरविंद सुब्रमण्यम ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक शोध पत्र में कहा था कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर इस अवधि में करीब 4.5 प्रतिशत वार्षिक रहनी चाहिए थी जबकि इसके 7 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान जताया गया. इसके बाद जीडीपी आंकड़ों को लेकर एक बहस छिड़ गई और सरकार पर इन आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के आरोप लगे.