आपके घर में बने सेप्टिक टैंक का होगा सर्वे, जानें क्यों लिया गया ये फैसला
by प्रमुख संवाददाता,लखनऊनगर विकास विभाग शहरी क्षेत्रों के घरों व प्रतिष्ठानों में बने सेप्टिक टैंक को चिह्नित कराने के लिए जल्द ही सर्वे कराने जा रहा है। इसके बाद ऐसे लोगों से सेप्टिक टैंक सफाई चार्ज की वसूली की जाएगी। प्रदेश में एक अनुमान के मुताबिक करीब 72 लाख सेप्टिक टैंक होने का अनुमान लगाया गया है।
अनियोजित कालोनियों में सर्वाधिक सेप्टिक टैंक
शहरी क्षेत्रों का दायरा काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। अनियोजित रूप से बसी कालोनियों में सीवर लाइन की व्यवस्था न होने की वजह से लोगों ने घरों में सेप्टिक टैंक बनवा रखा है। नियमत: इसकी पांच साल में सफाई होनी चाहिए, लेकिन मकान व प्रतिष्ठान मालिक ओवर फ्लो होने की स्थिति में ही इसकी सफाई कराते हैं। इससे भू-जल भी प्रदूषित होता है। इसीलिए शहरों में सेप्टिक टैंक को चिह्नित करने के लिए अभियान चलाया जाएगा।
कैबिनेट द्वारा मंजूर की जा चुकी नीति के मुताबिक घरों या प्रतिष्ठानों में अगर सेप्टिक टैंक बनवा रखा है तो प्रत्येक पांच साल पर इसकी सफाई कराना जरूरी होगा। इसके बदले लोगों को 2500 रुपये शुल्क देना होगा। यह शुल्क मकान व प्रतिष्ठान मालिक से गृहकर के साथ हर साल 500-500 रुपये लिया जाएगा।
अधिकतर घरों में सेप्टिक टैंक
नीति लाने से पहले नगर विकास विभाग ने सर्वे में पाया है कि प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में 86 प्रतिशत घरों में सेप्टिक टैंक हैं। नगर निगम में 78 प्रतिशत, पालिका परिषद में 90 प्रतिशत और नगर पंचायतों में 98 प्रतिशत घरों में सेप्टिक टैंक बने हुए हैं। प्रत्येक घर में एक सेप्टिक टैंक मानते हुए यह आकलन किया गया है कि प्रदेश में करीब 72 लाख सेप्टिक टैंक बने हुए हैं। नगर निगम में 30.2 लाख, नगर पालिका परिषद में 26.7 लाख और नगर पंचायतों में 15 लाख सेप्टिक टैंक बने हुए हैं।
तकनीकी जानकारी के अभाव में बन रहे सेप्टिक टैंक
घरों या प्रतिष्ठानों में सेप्टिक टैंक बनाने वालों को तकनीकी जानकारी भी नहीं है। इसके चलते भू-जल के साथ वायु प्रदूषण का खतरा बना रहता है। सेप्टिक टैंक अपर्याप्त ज्ञान और बिना विशेषज्ञों के सुझाव के नहीं बनाए जाने चाहिए। अमूमन लोग जानकारी के अभाव में घरों के अंदर सेप्टिक टैंक बना देते हैं। इससे शौचालय के नीचे सड़क, नालियों पर इसका गंदा पानी बहाया जाता है। सही तरीके से इसका रख-रखाव न होने से मल कीचड़ छलकने व दुर्गंध से लोगों के स्वास्थ्य का खतरा बना रहता है। इसीलिए नगर विकास विभाग ने इसके तकनीक के आधार पर सफाई की नीति बनाई है।