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अनूठी वास्तुकला से प्रसिद्ध है वृंदावन का रंगनाथ मंदिर, जानिए क्या है यहां से जुड़ा रहस्य

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भारत के कोने-कोने में भगवान श्रीकृष्ण की अनेकों चमत्कारी मंदिर हैं जहां भक्तों की भीड़ दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा ऐसा पवित्र स्थान हैं जहां श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी बहुत सी छवियां देखने को मिलती है। मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के अनेकों ऐसे चमत्कारी मंदिर हैं जहां भक्तों दर्शन के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं। आज हम आपको भगवान श्रीकृष्ण के ऐसे ही चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, वृंदावन स्थित रंगनाथ मंदिर की।

बता दें, दक्षिण भारतीय शैली में बना रंगनाथजी का विशाल मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। मंदिर में गोपुरम दक्षिण भारत का एहसास कराता है तो पश्चमी एवं पूर्वी द्वार उत्तर भारत का। भगवान का मुख पूर्व की तरफ रहता है। बारहद्वारी यानी मंडप के एक तरफ वास्तु के अनुसार कुंड यानी जल का निवास है तो दूसरी तरफ बगीचा है जहां से भगवान के लिए पुष्प जाते हैं।

पांच परिक्रमा और सात द्वार वाले इस मंदिर के हर परकोटे के चारों कोनों पर गरुडज़ी विराजमान हैं। जो शुभ संकेत प्रदान करने का एहसास कराते हैं। मंदिर के अंदर बने पुजारी एवं रसोइयों के आवास में कुएं, आंगन में बने हैं। इसके अलावा पूर्वी एवं पश्चमी कटरा की बनावट यज्ञ कुंड की तरह है। इस तरह के बने मंदिर को पुराणों में दिव्यदेश कहा जाता है।

उत्तर भारत का पहला दिव्यदेश मंदिर-
भगवान नारायण के लोक को दिव्यदेश की संज्ञा दी जाती है। दिव्यदेश की पहचान इसकी पांच प्रमुख पहचान से होती है। दिव्य देश की पूर्णता को मंदिर परिसर में गरुण स्तंभ, गोपुरम, पुष्करणी, पुष्प उद्यान और गोशाला आवश्यक होती हैं। जो कि रंगजी मंदिर में विद्यमान हों और श्रीरामानुज संप्रदाय के द्वादश आलवारों द्वारा भगवान का मंगलाशासन किया गया हो, उनको भी दिव्य देश कहते हैं।

दक्षिण भारत में 108 दिव्यदेशों की चर्चा होती है। जिनमें से 106 दिव्यदेश इस भूतल पर प्रत्यक्ष दर्शन को प्राप्त होते हैं। उन दिव्यदेशों में श्रीरामानुजा संप्रदाय के द्वादश आलवारों द्वारा भगवान का मंगलाशासन किया गया है। आलवारों के द्वारा मंगलाशासन किए गए स्थानों को दिव्य देश की श्रेणी में रखा जाता है। दूसरे दिव्यदेश के पांच चिन्ह महत्वपूर्ण हैं।

इनमें प्रथम गरुण स्तंभ, जो भगवान के गर्भग्रह के समक्ष होता है। दूसरा गोपुरम जो मंदिर के मुख्य द्वार पर होता है। तीसरा भगवान की पुष्करणी जो मंदिर के प्रांगण में ही होनी चाहिए। चतुर्थ भगवान का पुष्प उद्यान, पांचवां भगवान की गोशाला ये पांचों चिन्ह जिस मंदिर में होते हैं वह दिव्य देश कहलाता है। उत्तर भारत में श्रीरंगमंदिर दिव्यदेश प्रमुख है। इससे पूर्व कोई भी दिव्यदेश उत्तरभारत में स्थापित नहीं हुआ। इसलिए उत्तर भारत का प्रथम और प्रमुख दिव्यदेश है। जहां आज भी भगवान की उपासना, पूजा दक्षिण शैली से ही विधिवत हो रही है।

आचार्य रंगदेशिक स्वामी ने कराया रंगजी मंदिर का निर्माण-
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का दर्शन करवाते मंदिरों की नगरी वृंदावन में दक्षिण भारतीय संस्कृति का रंगजी मंदिर भी प्रमुख पहचान बनाए है। चारों ओर से गौड़ीय वैष्णव संप्रदायों के बीच रामानुज संप्रदाय का पताका फहरा रहे इस मंदिर निर्माण का श्रेय भले ही श्रीरंगदेशिक स्वामीजी को जाता हो। मगर, मंदिर निर्माण में मथुरा के धनाढ्य सेठ लक्ष्मीचंद और उनके भाईयों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता। तन, मन और धन आचार्य रंगदेशिक स्वामीजी को समर्पित कर तीनों भाईयों ने उनकी वृंदावन में श्रीगोदा देवी जी को रंगमन्नार के साथ ब्रज में प्रतिष्ठित करवाने की इच्छा पूरी की।
 

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Web Title: Ranganath Temple of Vrindavan